भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।
बन्द सफलताओं पे पड़े तालों की कुँजी पा जाऊँ।।
विषधर नागों से नेता, सत्ता वृक्षों में लिपटे हैं;
उजले वस्त्रों में काले तन, चमचे उनसे चिपटे हैं;
जनता से पूरे कटकर, सुरा सुंदरी में सिमटे हैं;
चरण वन्दना कर उनकी सत्ता सुख थोड़ा पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
इंजीनियर के बंगलों में, ठेकेदार बन काटूँ चक्कर;
नये नये तोहफों से रखूं, घर आँगन उसका सजाकर;
कुत्तों से उसके करूँ दोस्ती, हाय हलो टॉमी कहकर;
सीमेंट में बालू मिलाने की बेरोकटोक आज्ञा पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
मंत्री के बीवी बच्चों को, नई नई शॉपिंग करवाऊँ;
उसके सेक्रेटरी से लेकर, कुक तक कुछ कुछ भेंट चढाऊँ;
पीक थूकता देख हथेली, आगे कर पीकदान बन जाऊँ;
सप्लाई में बिना दिए कुछ यूँ ही बिल पास करा लाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
बड़े बड़े भर्ती अफसर के, दफ्तर में जा तलवे चाटूँ;
दुम हिलाते कुत्ते सा बन, हाँ हाँ में झूठे सुख दुख बाँटूँ;
इंटरव्यू को झोंक भाड़ में, अच्छी भर्ती खुद ही छाँटूँ;
अकल के अंधे गाँठ के पूरे ऊँचे ओहदों पर बैठाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
मंचों के ओहदेदारों के, अनुचित को उचित बनाऊँ;
चाहे ढपोरशँख भी हो तो, झूठी वाह से 'सूर' बनाऊँ;
पढूँ कसीदे शान में उनकी, हार गले में पहनाऊँ;
नभ में टांगूँ वाहवाही से बदले में कुछ मैं भी पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-06-2016
बन्द सफलताओं पे पड़े तालों की कुँजी पा जाऊँ।।
विषधर नागों से नेता, सत्ता वृक्षों में लिपटे हैं;
उजले वस्त्रों में काले तन, चमचे उनसे चिपटे हैं;
जनता से पूरे कटकर, सुरा सुंदरी में सिमटे हैं;
चरण वन्दना कर उनकी सत्ता सुख थोड़ा पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
इंजीनियर के बंगलों में, ठेकेदार बन काटूँ चक्कर;
नये नये तोहफों से रखूं, घर आँगन उसका सजाकर;
कुत्तों से उसके करूँ दोस्ती, हाय हलो टॉमी कहकर;
सीमेंट में बालू मिलाने की बेरोकटोक आज्ञा पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
मंत्री के बीवी बच्चों को, नई नई शॉपिंग करवाऊँ;
उसके सेक्रेटरी से लेकर, कुक तक कुछ कुछ भेंट चढाऊँ;
पीक थूकता देख हथेली, आगे कर पीकदान बन जाऊँ;
सप्लाई में बिना दिए कुछ यूँ ही बिल पास करा लाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
बड़े बड़े भर्ती अफसर के, दफ्तर में जा तलवे चाटूँ;
दुम हिलाते कुत्ते सा बन, हाँ हाँ में झूठे सुख दुख बाँटूँ;
इंटरव्यू को झोंक भाड़ में, अच्छी भर्ती खुद ही छाँटूँ;
अकल के अंधे गाँठ के पूरे ऊँचे ओहदों पर बैठाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
मंचों के ओहदेदारों के, अनुचित को उचित बनाऊँ;
चाहे ढपोरशँख भी हो तो, झूठी वाह से 'सूर' बनाऊँ;
पढूँ कसीदे शान में उनकी, हार गले में पहनाऊँ;
नभ में टांगूँ वाहवाही से बदले में कुछ मैं भी पा जाऊँ।
भगवन चाटुकार मैं भी बन जाऊँ।।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
14-06-2016
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