बह्र:- 1222 1222
पड़े मुझको न क्षण भर कल,
मेरा मन है विकल प्रति पल।
मची मन में विकट हलचल,
बिना तेरे न कोई हल।
नहीं अब और जीना है,
ये दुनिया रोज करती छल।
सहन करने का इस तन में,
बचा है अब नहीं कुछ बल।
हुआ यादों में तेरी खो,
कलेजा राख तिल तिल जल।
तड़पता याद करके जी
हुआ है जब से तू ओझल।
'नमन' कितना जलाओगे,
सजन जिद छोड़ अब घर चल।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-12-18
पड़े मुझको न क्षण भर कल,
मेरा मन है विकल प्रति पल।
मची मन में विकट हलचल,
बिना तेरे न कोई हल।
नहीं अब और जीना है,
ये दुनिया रोज करती छल।
सहन करने का इस तन में,
बचा है अब नहीं कुछ बल।
हुआ यादों में तेरी खो,
कलेजा राख तिल तिल जल।
तड़पता याद करके जी
हुआ है जब से तू ओझल।
'नमन' कितना जलाओगे,
सजन जिद छोड़ अब घर चल।
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
29-12-18
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