Friday, April 19, 2019

ग़ज़ल (यही बस मन में ठाना है)

आज के नेताओं पर एक मुसलसल ग़ज़ल

बह्र:- 1222   1222

यही बस मन में ठाना है,
पराया माल खाना है।

डकारें हम भला क्यों लें,
जो खाया पच वो जाना है।

यही लाये लिखा के हम,
कि माले मुफ़्त पाना है।

हमारी सूँघ ले जाए,
जहाँ फौकट का दाना है।

बँधाएँ आस हम झूठी,
गरीबी को हटाना है।

गरीबी गर नहीं हटती,
गरीबों को मिटाना है।

जहाँ दंगे लड़ाई हो,
वहीं हमरा ठिकाना है।

सियासत कर बने लीडर,
यही तो अब जमाना है।

हमें जनता से क्या लेना,
'नमन' बस पद बचाना है।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
26-09-17

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