Wednesday, April 24, 2019

प्रहरणकलिका छंद "विकल मन"

मधुकर अब क्यों गुनगुन करते।
सुलगत हिय में छटपट भरते।।
हृदय रहत आकुल अब नित है।
इन कलियन में मधु-रस कित है।।

पुहुप पुहुप पे भ्रमण करत हो।
विरहण सम आतुर विचरत हो।।
भ्रमर परखलो सब कुछ बदला।
गिरधर बिन तो कण कण पगला।।

नयन विकल श्याम-रस रत हैं।
हरि-छवि चखने मग निरखत हैं।।
यह तन मन नीरस पतझड़ सा।
जगत लगत पाहन सम जड़ सा।।

शुभ अवसर दो तव दरशन का।
व्यथित रस चखूँ दउ चरणन का।।
नटवर प्रकटो सुखकर वर दो।
सरस अमिय जीवन यह कर दो।।==================
लक्षण छंद:-

"ननभन लग" छंद रचत शुभदा।
'प्रहरणकलिका' रसमय वरदा।।

"ननभन लग" = नगण नगण भगण नगण लघु गुरु

111 111  211 111+लघु गुरु =14 वर्ण
चार चरण, दो दो समतुकांत

उदाहरण छंद "गणपति-छवि"

गणपति-छवि अन्तरपट धर के।
नित नव रस में मन सित कर के।।
गजवदन विनायक जप कर ले।
कलि-भव-भय से नर तुम तर ले।।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
11-08-18

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