Thursday, April 11, 2019

आल्हा छंद "समय"

आल्हा छंद / वीर छंद

कौन समय को रख सकता है, अपनी मुट्ठी में कर बंद।
समय-धार नित बहती रहती, कभी न ये पड़ती है मंद।।
साथ समय के चलना सीखें, मिला सभी से अपना हाथ।
ढल जातें जो समय देख के, देता समय उन्हीं का साथ।।

काल-चक्र बलवान बड़ा है, उस पर टिकी हुई ये सृष्टि।
नियत समय पर फसलें उगती, और बादलों से भी वृष्टि।।
वसुधा घूर्णन, ऋतु परिवर्तन, पतझड़ या मौसम शालीन।
धूप छाँव अरु रात दिवस भी, सभी समय के हैं आधीन।।

वापस कभी नहीं आता है, एक बार जो छूटा तीर।
तल को देख सदा बढ़ता है, उल्टा कभी न बहता नीर।।
तीर नीर सम चाल समय की, कभी समय की करें न चूक।
एक बार जो चूक गये तो, रहती जीवन भर फिर हूक।।

नव आशा, विश्वास हृदय में, सदा रखें जो हो गंभीर।
निज कामों में मग्न रहें जो, बाधाओं से हो न अधीर।।
ऐसे नर विचलित नहिं होते, देख समय की टेढ़ी चाल।
एक समान लगे उनको तो, भला बुरा दोनों ही काल।।

मोल समय का जो पहचानें, दृढ़ संकल्प हृदय में धार।
सत्य मार्ग पर आगे बढ़ते, हार कभी न करें स्वीकार।।
हर संकट में अटल रहें जो, कछु न प्रलोभन उन्हें लुभाय।
जग के ही हित में रहतें जो, कालजयी नर वे कहलाय।।

समय कभी आहट नहिं देता, यह तो आता है चुपचाप।
सफल जगत में वे नर होते, लेते इसको पहले भाँप।।
काल बन्धनों से ऊपर उठ, नेकी के जो करतें काम।
समय लिखे ऐसों की गाथा, अमर करें वे जग में नाम।।

आल्हा छंद / वीर छंद विधान

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
06-03-2018

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