श्याम सलोने, हृदय बसत है।
दर्श बिना ये, मन तरसत है।।
भक्ति नाथ दें, कमल चरण की।
शक्ति मुझे दें, अभय शरण की।।
पातक मैं तो, जनम जनम का।
मैं नहिं जानूँ, मरम धरम का।।
मैं अब आया, विकल हृदय ले।
श्याम बिहारी, हर भव भय ले।।
मोहन घूमे, जिन गलियन में।
वेणु बजाई, जिस जिस वन में।।
चूम रहा वे, सब पथ ब्रज के।
माथ धरूँ मैं, कण उस रज के।।
हीन बना मैं, सब कुछ बिसरा।
दीन बना मैं, दर पर पसरा।।
भीख कृपा की, अब नटवर दे।
वृष्टि दया की, सर पर कर दे।।
=================
लक्षण छंद:-
"भातनसा" से, 'पवन' सजत है।
पाँच व सप्ता, वरणन यति है।।
"भातनसा" = भगण तगण नगण सगण
211 221 111 112 = 12 वर्ण, यति 5,7
चार चरण दो दो समतुकांत।
***********************
बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-17
दर्श बिना ये, मन तरसत है।।
भक्ति नाथ दें, कमल चरण की।
शक्ति मुझे दें, अभय शरण की।।
पातक मैं तो, जनम जनम का।
मैं नहिं जानूँ, मरम धरम का।।
मैं अब आया, विकल हृदय ले।
श्याम बिहारी, हर भव भय ले।।
मोहन घूमे, जिन गलियन में।
वेणु बजाई, जिस जिस वन में।।
चूम रहा वे, सब पथ ब्रज के।
माथ धरूँ मैं, कण उस रज के।।
हीन बना मैं, सब कुछ बिसरा।
दीन बना मैं, दर पर पसरा।।
भीख कृपा की, अब नटवर दे।
वृष्टि दया की, सर पर कर दे।।
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लक्षण छंद:-
"भातनसा" से, 'पवन' सजत है।
पाँच व सप्ता, वरणन यति है।।
"भातनसा" = भगण तगण नगण सगण
211 221 111 112 = 12 वर्ण, यति 5,7
चार चरण दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया
19-06-17
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